क्यों शिव-शक्ति? ब्रम्हा की ब्रम्हाणी? विष्णु की वैष्णवी? रूद्र की रूद्राणी? नर-नारी के सहयोगी अस्तित्व को हड़प कर नष्ट-भ्रष्ट कर, एकोऽहम हे पुरुष! तुम पूर्ण हो अपने आधे अस्तित्व में तो फिर इस संसार में स्त्रीत्व की आवश्यकता ही क्या थी? क्यों त्रिदेवों के रहने के बावजूद संयुक्त शक्ति बनकर दुर्गा को आना पड़ता है? सृष्टि की सारी रक्षक शक्तियों के बावजूद आत्मरक्षार्थ काली बन जाना पड़ता है? पाण्डेय सरिता
ऐ मेरी जिंदगी के पन्ने! मिलोगे मुझे तुम सिमटे कि बिखरे! गजब बवाल भरे सवाल! या छवि बेदाग साफ़ सुथरे! आइने सी पारदर्शी! या रहस्यमय गहरे! स्वतंत्र हवाओं सी या कैद भरे पहरे! रसभरे या निचोड़े हुए गन्ने! ऐ मेरे जिंदगी के पन्ने!
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